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चन्द शेर / आसी ग़ाज़ीपुरी

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वो कहते हैं--"मैं ज़िन्दगानी हूँ तेरी"।
यह सच है तो इसका भरोसा नहीं है॥
 
 
कमी न जोशे-जुनूँ में, न पाँव में ताकत।
 
कोई नहीं जो उठा लाए घर में सहरा को॥
 
 
ऐ पीरेमुग़ाँ! ख़ून की बू साग़रे-मय में।
 
तोड़ा जिसे साक़ी ने, वो पैमानये-दिल था॥
 
 
कुछ हमीं समझेंगे या तोज़े-क़यामतवाले।
 
जिस तरह कटती है उम्मीदे-मुलाक़ात की रात॥
 
 
गु़बार होके भी ‘आसी’ फिरोगे आवारा।
 
गुनूँमे-इश्क़ से मुमकिन नहीं है छुटकारा॥
 
 
 
 
 
 
 
हम से बेकल से वादये-फ़रदा?
 
बात करते हो तुम क़यामत की॥
 
 
साथ छोड़ा सफ़रे-मुल्केअदम में सब ने।
 
लिपटी जाती है मगर हसरे-दीदार हनूज॥
 
 
हवा के रुख़ तो ज़रा आके बैठ जा ऐ क़ैस।
 
नसीबे-सुबहने छेड़ा है ज़ुल्फ़े-लैला को॥
 
 
बस तुम्हारी त्रज से जो कुछ हो।
 
मेरी सई और मेरी हिम्मत क्या॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
</Poem>