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इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम।

एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥


वोह मुसव्वर था कोई या आपका हुस्नेशबाब।

जिसने सूरत देख ली, इक पैकरे-तसवीर था॥





ऐ शबेगोर! वो बेताबि-ए-शब हाय फ़िराक़।

आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥