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|रचनाकार= आसी ग़ाज़ीपुरी
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<poem>जो रही और कोई दम यही हालत दिल की।
आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥
क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥
</poem>