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इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में... / आसी ग़ाज़ीपुरी
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13:26, 20 जुलाई 2009
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<poem>इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम।
एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥
वोह मुसव्वर था कोई या आपका हुस्नेशबाब।
जिसने सूरत देख ली, इक पैकरे-तसवीर था॥
ऐ शबेगोर! वो बेताबि-ए-शब हाय फ़िराक़।
आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥
</poem>
अनिल जनविजय
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