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{{KKRachna
|रचनाकार=असग़र गोण्डवी
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}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

समा गए मेरी नज़रों में छा गए दिल पर।
ख़याल करता हूँ, उनको कि देखता हूँ मैं॥

न कोई नाम है मेरा न कोई सूरत है।
कुछ इस तरह हमातनदीद हो गया हूं मैं॥

न कामयाब हुआ और न रह गया महरूम।
बडा़ ग़ज़ब है कि मंज़िल पै खो गया हूँ मैं॥

</poem>