Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अली अख़्तर ‘अख़्तर’ }} [[Category:गज़ल]] <poem> मेरी बला को ह...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अली अख़्तर ‘अख़्तर’
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>

मेरी बला को हो, जाती हुई बहार का ग़म।
बहुत लुटाई हैं ऐसी जवानियाँ मैंने॥
मुझीको परदये-हस्ती में दे रहा है फ़रेब।
वो हुस्न जिसको किया जलवा आफ़रीं मैंने॥

मेरी बेख़ुदी है उन आँखों का सदका़।
छलकती है जिन से शराबे-मुहब्बत॥
उलट जायें सब अक़्लो-इरफ़ाँ की बहसें।
उठा दूँ अभी पर नक़ाबे-मुहब्बत॥


</poem>