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|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
[[Category: मुक्तक]]
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जीवन की इस कर्मभूमि में ,ठीक नहीं है बैठे रहना ।रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना ,अपनी कहना ।कहना।
सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना ।सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना