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<poem>
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा<ref >कण-कण</ ref > हुए तो बिखर जाएँगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं<ref >आवाज़</ ref > हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं
रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों<ref >वधस्थल</ ref > में पहुँचकर भी झुकते नहींख़्वाब तो हर्फ़<ref >अक्षर</ ref > हैंख़्वाब तो नूर<ref >प्रकाश</ ref > हैं ख़्वाब सुक़रात<ref >जिन्हें सच कहने के लिए ज़ह्र का प्याला पीना पड़ा था</ ref > हैंख़्वाब मंसूर<ref >एक वली(महात्मा) जिन्होंने ‘अनलहक़’ (मैं ईश्वर हूँ ) कहा था और इस अपराध के लिए उनकी गर्दन काट डाली गई थी </ ref > हैं. </poem >
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