भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: चुपके से वह निकला घर से दिल में ख्वाहिश थी कि एक-एक सब जन के लिए ला...
चुपके से वह निकला घर से
दिल में ख्वाहिश थी कि एक-एक सब जन के लिए
लाऊंगा खुशियाँ
बात हो चुकी थी
तय हो गया था काम मिलना
घर से निकलते ही उसके
न जाने कहाँ से आ गए बादल
होने लगी झमा-झम
मुसलाधार बारिश
गर्मी से सताई धरती लेने लगी खुलकर सांसे
चिडिया-चुनमुन चहचहाने लगे नवजीवन पाकर
चारों ओर कुदरत मुस्कुरा सी रही थी
लेकिन छूट गई थी उसकी बस
नहीं पहुँच पाया था समय पर
सो नहीं मिल पाया था उसे
वह महीनों चिरौरी कर मिला हुआ काम
बरसात ने उसे
गिरा दिया था ख़ुद की ही नजर में
एक बेरोजगार आदमी
प्रकृति से प्रेम करे तो कैसे
आज हुई थी बरसात
जिसने खुरच कर बहा दिया था उसके
सपनों को, उम्मीदों को
फिर भी आज होने वाली बरसात की
दिल से तारीफ करना चाहता है
वह भी शामिल होना चाहता है
दूसरो के सुख और संतोष में ।
दिल में ख्वाहिश थी कि एक-एक सब जन के लिए
लाऊंगा खुशियाँ
बात हो चुकी थी
तय हो गया था काम मिलना
घर से निकलते ही उसके
न जाने कहाँ से आ गए बादल
होने लगी झमा-झम
मुसलाधार बारिश
गर्मी से सताई धरती लेने लगी खुलकर सांसे
चिडिया-चुनमुन चहचहाने लगे नवजीवन पाकर
चारों ओर कुदरत मुस्कुरा सी रही थी
लेकिन छूट गई थी उसकी बस
नहीं पहुँच पाया था समय पर
सो नहीं मिल पाया था उसे
वह महीनों चिरौरी कर मिला हुआ काम
बरसात ने उसे
गिरा दिया था ख़ुद की ही नजर में
एक बेरोजगार आदमी
प्रकृति से प्रेम करे तो कैसे
आज हुई थी बरसात
जिसने खुरच कर बहा दिया था उसके
सपनों को, उम्मीदों को
फिर भी आज होने वाली बरसात की
दिल से तारीफ करना चाहता है
वह भी शामिल होना चाहता है
दूसरो के सुख और संतोष में ।