कवि [ रामधारी सिंह 'दिनकर'] [[catagory: कवितांएं]]{{KKGlobal}}{{KKRachna[[catagory: |रचनाकार= रामधारी सिंह '"दिनकर']]" }}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKCatKavita}}<poem>
यह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में
कूक रही क्यों नियति व्यंग से इस गोधूलि-लगन में ?
कूक रही क्यों नियति व्यंगय से इस गोधूलि-लगन में ? मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रंगारश्रृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
इस उजाड़ निर्जर खंड़हर निर्जन खंडहर में छिन्न -भिन्न उजड़े इस घर मे
तुझे रूप सजाने की सूझी
इस सत्यानाश प्रहर में! ड़ाल ड़ाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
डाल-डाल पर छेड़ रही कोयल मर्सिया-तराना,
और तुझे सूझा इस दम ही उत्सव हाय, मनाना;
हम धोते हैं घाव इधर सतलज के शीतल जल से,
उधर तुझे भाता है इनपर नमक हाय, छिड़काना !
महल कहां बस, हमें सहारा
केवल फ़ूस-फ़ास, तॄणदल का;
अन्न नहीं, अवल्म्ब अवलम्ब प्राण का गम, आंसू आँसू या गंगाजल का;</poem>