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[[Category:गज़ल]]
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मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है
सर से पा तक वो समाँ है कि नज़र लगती है
मौज-हमने हर गाम सजदों ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है <br>जलाये हैं चिराग़ सर से पा तक वो समाँ है कि नज़र अब तेरी राहगुज़र राहगुज़र लगती है <br><br>
हमने हर गाम सज्दों ए जलाये हैं चिराग़ <br>अब लम्हे लम्हे बसी है तेरी राहगुज़र राहगुज़र यादों की महक आज की रात तो ख़ुश्बू का सफ़र लगती है <br><br>
लम्हे लम्हे बसी है तेरी यादों की महक <br>आज की रात जल गया अपना नशेमन तो ख़ुश्बू का सफ़र कोई बात नहीं देखना ये है कि अब आग किधर लगती है <br><br>
जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं <br>देखना ये सारी दुनिया में ग़रीबों का लहू बहता है कि अब आग किधर हर ज़मीं मुझको मेरे ख़ून से तर लगती है <br><br>
सारी दुनिया में ग़रीबों का लहू बहता है <br>हर ज़मीं मुझको मेरे ख़ून से तर लगती है <br><br> वाक़्या वाक़या शहर में कल तो कोई ऐसा न हुआ <br>ये तो "अख़्तर" के दफ़्तर की ख़बर लगती है <br><br/poem>