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अपने हर अस्वस्थ समय को / नईम

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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नईम]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह=[[Category:गीत]]}}[[Category:नईम]]{{KKCatNavgeet}}<poem>अपने हर अस्वस्थ समय कोमौसम के मत्थे मढ़ देतेनिपट झूठ को सत्य-कथा सा–सरेआम हम तुम मढ़ लेते
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तनिक नहीं हमको तमीज हंसने–रोने कास्वांग बखूबी कर लेते भोले होने काजिनकी मिलती पीठें खाली¸बिला इजाजत हम चढ़ लेते वर्ण¸ वर्ग¸ नस्लों का मारा हुआ ज़माना¸हमसे बेहतर बना न पाता कोई बहानाभाग्य लेख जन्मांध यहां परबड़े सलीके से पढ़ लेते दर्द कहीं पर और कहीं इज़हार कर रहेमरने से पहले हम तुम सौ बार मर रहेफ्रेमों में फूहड़ अतीत को काट–छांट कर¸बिला शकशुबह हम भर लेते इधर रहे वो बुलाउधर को हम बढ़ लेते</poem>
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