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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे|
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे|
ताब-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ,
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैरां हैराँ होंगे|
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
हम तो कल ख़्वाब-ए-आदम अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे|
फिर बहार आई वही दश्त-ए-नावर्दी होगी,
लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे|
एक हम हैं के हुये हुए ऐसे पशेमाँ पशेमान के बस, एक वो हैं के जिंहें जिन्हें चाह के अर्माँ अरमाँ होंगे|
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-इसा ईसा उठायेँगे उठायेंगे कभी,
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे|
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन",
अब आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमा मुसलमाँ होंगे|
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