[[category: ग़ज़ल]]
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तुहमतें चन्द अपने जिम्मे ज़िम्मे धर चले ।जिसलिए किसलिए आये थे हम सो क्या कर चले ।।
ज़िंदगी है या कोई तूफान तूफ़ान है,हम तो इस जीने के हाथों मर चले ।
शमा के क्या हमें काम इन गुलों से ऐ सबाएक दम आए इधर, उधर चले दोस्तो देखा तमाशा याँ का बसतुम रहो अब हम तो अपने घर चले आह!बस जी मत जला तब जानियेजब कोई अफ़्सूँ तेरा उस पर चले शमअ की मानिंद हम इस बज़्म में,चश्मे-नम छाये आये थे, दामन तर चले । ढूँढते हैं आपसे उसको परेशैख़ साहिब छोड़ घर बाहर चले हम जहाँ में आये थे तन्हा वलेसाथ अपने अब उसे लेकर चले जूँ शरर ऐ हस्ती-ए-बेबूद याँबारे हम भी अपनी बारी भर चले
साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,
जब तलक बस चल सके साग़र चले । 'दर्द'कुछ मालूम है ये लोग सबकिस तरफ से आये थे कीधर चले
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