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कुछ क़तआत / नज़्म तबा तबाई

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{{KKRachna
|रचनाकार=नज़्म तबा तबाई
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कहाँ तक रास्ता देखा करें हम बर्के़-खिरमन का।

लगाकर आग देखेंगे तमाशा अब नशेमन का॥



अदाये-सादगी में कंघी-चोटी ने ख़लल डाला।

शिकन माथे पे, अबरू में गिरह, गेसू में बल डाला॥



आ गया फिर रंमज़ाँ, क्या होगा।

हाय ऐ पीरेमुग़ाँ! क्या होगा॥



अहसान ले न हिम्मते-मर्दाना छोड़कर।

रस्ता भी चल तो सब्ज़ये-बेगाना छोड़कर॥



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