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तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास
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22:30, 6 फ़रवरी 2008
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि!
राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!!
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