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Kavita Kosh से
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}<poem>(१)
ढोलक की ताल पर
वह मटकी
छ्नछ्नाये
उभार
थरथराये
होंठों पे फिराई
चुम्बन
बिकने लगा .....!!
(२)
पूरी दुनियां में
जैसे उस वक्त रात थी
बाहर चला गया ....!!
(३)
लालटेन की
धीमी रौशनी रोशनी में
उसने वक्त से कहा -
मैं जीवन भर तेरी