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[[Category:गज़ल]]
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आँखों में जो बात हो गई गयी हैएक शरहे-हयात हो गई गयी है।
जब दिल की वफ़ात हो गई गयी हैहर चीज की रात हो गई गयी है।
ग़म से छुट कर ये ग़म है मुझको
क्यों ग़म से नजात हो गई गयी है।
मुद्दत से खबर मिली न दिल को
शायद कोई बात हो गई गयी है।
जिस शै पर नज़र पड़ी है तेरी
तस्वीरे-हयात हो गयी है।
 
दिल में तुझ से थी जो शिकायत
अब ग़म के निकात हो गयी है।
 
इक़रारे-गुनाहे-इश्क़ सुन लो
मुझसे इस बात हो गयी है।
 
जो चीज भी मुझको हाथ आयी
तेरी सौगात हो गयी है।
 
क्या जानिये पहले मौत क्या थी
अब मेरी हयात हो गयी है।
 
घटते-घटते तेरी इनायत
मेरी औक़ात हो गयी है।
 
उस चस्मे-सियह की याद अक्सर
शामे-जुल्मात हो गयी है।
 
इस दौर में जिन्दगी बसर की
बीमार की रात हो गयी है।
 
जीती हुई बाज़ी-ए-मुहब्बत
खेला हूँ तो मात हो गयी है।
 
मिटने लगीं ज़िन्दगी की कद्रें
जब ग़म से नजात हो गयी है।
 
वो चाहें तो वक़्त भी बदल जाय
जब आये हैं, रात हो गयी है।
 
दुनिया है कितनी बे-ठिकाना
आशिक़ की बरात हो गयी है।
 
पहले वो निगाह इक किरन थी
अब बर्क़-सिफ़ात हो गयी है।
 
जिस चीज को छू दिया है तूने
एक बर्गे-नबात हो गयी है।
 
इक्का-दुक्का सदाये-जंजीर
जिन्दाँ में रात हो गयी है।
 
एक-एक सिफ़त ’फ़िराक़’ उसकी
देखा है तो ज़ात हो गयी है।
 
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