|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<Poem>
तेरे आँगन की मिट्टी से
जो हवा आई है
साथ अपने
कई सवालात लायी लाई है
अब न
अल्फाज़ हैं मेरे पास
खामोशी
कफ़न में सिला ख़त
लायी लाई है ...............
तेरे रहम
अब रूह कहीं
तन्हाई अंधेरों का अर्थ
चुरा लायी लाई है ..............
दरख्तों ने की है
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
उम्मीद जले कपडों कपड़ों मेंमुस्कुरायी मुस्कुराई है ............
रात ने तलाक