भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता / हरकीरत हकीर

6 bytes removed, 05:15, 23 अगस्त 2009
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<Poem>
हंसी की इक
जालों को उतारने की
नाकाम कोशिश में
बादबन* <ref>हवाओं के बन्‍धन</ref>खोलती
पर हवायें
और मुखालिफ़* <ref>विरोधी</ref> हो जातीं
इर्द-गिर्द के घेरे
और कस जाते...
न वह अतीत है
न वर्तमान...
जिंदगी ज़िंदगी एक गहरी नदी है
मुझे इस पानी में उतरना है
मेरे लिए हवाओं का साथ
हुँह...!
तुम्‍हारी यही तो त्रासदी है
जिंदगी ज़िंदगी भर
गिरने का रोना...
खोने का रोना...
बुन रही थी....!!
'''१) बादबन-हवाओं के बन्‍धन२)मुखालिफ़-विरोधी'''{{KKMeaning}}
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits