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Kavita Kosh से
|रचनाकार=नचिकेता
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बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
मिटके रहेगा अब शोषण
यह नकली आज़ादी भी
ख़ून हमारा पीती है
औ' सरमायेदारों की
बस्ती में ही जीती है
मिटके रहेगा क्रूर दमन
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
मिटके रहेगा अब शोषण
सत्ताधारी के घर में
अब न मनेगी दीवाली
देती है संदेश हमें
उगते सूरज की लाली
तूफ़ानों ने ही आख़िर
दिया हमें फिर आमंत्रण
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
मिटके रहेगा अब शोषण
हर घर की दीवारों की
सुलगी आज निगाहें हैं
हक़ की बड़ी लड़ाई को
फड़क रही फिर बाहें हैं
दशों दिशाओं में गूँजी
हथियारों की खन-खन-खन !
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन !
मिटके रहेगा अब शोषण !
'''(1977 में रचित)</poem>