Changes

मै मारना चाहूंगा किसी आदमखोर को
गुरु चाहते थेकि कुछ न देखूं उस दाहिनी आंख के सिवाऔर मेरी नज़र हटती ही नहीं थी
बाईं आंख की कातरता से
मैं तो पेडों से विलगते पत्तों को देखकर भी
हो जाता था दुखी
मुझे कोई रुचि नहीं थी दोस्तों से आगे निकल जाने की
भाई तो फिर भाई थे
स्वरों में लय, परों में उडान
और अब भी शर्मिंदा नहीं हूंअपनी असफलता सेबल्कि ख़ुश हूं
कि कम से कम मेरी वज़ह से
नहीं देना पडा
किसी एकलव्य को अंगूठा।
</poem>