भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यपाल सहगल |संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल }} <po...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>जब मैं लौट कर आया मेरे हाथ में शाम की
कुछ टहनियाँ थी
जब मैं शाम को लौट कर आया तो पूरा दिन खर्च करके
मेरी जेब में दिन के जितने हरे नोट थी मैंने खर्च कर
डाले
मैंने पूरा दिन ऐसे नीलाम कर दिया जैसे
नीलाम करते हैं लोग सामान घर बदलते हुए
जब मैं शाम को घर लौटकर आया
तो मेरे हात में शाम की पत्तियाँ थी
हरी,मुलायम और घनी</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>जब मैं लौट कर आया मेरे हाथ में शाम की
कुछ टहनियाँ थी
जब मैं शाम को लौट कर आया तो पूरा दिन खर्च करके
मेरी जेब में दिन के जितने हरे नोट थी मैंने खर्च कर
डाले
मैंने पूरा दिन ऐसे नीलाम कर दिया जैसे
नीलाम करते हैं लोग सामान घर बदलते हुए
जब मैं शाम को घर लौटकर आया
तो मेरे हात में शाम की पत्तियाँ थी
हरी,मुलायम और घनी</poem>