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{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>यदि मैं चला चलूं इसके बेच में से गुज़रता हुआ
क्या यह एक्नदी है
जिसमें से हैं चुल्लू भर जल पी लूँ
क्या इस पर बर्फ जमी है
और मैं फिसलता चला जाऊँगा मैदान की रात में
इससे बातें करूँ
या इसे सुनूँ
यह इतनी अच्छी ओर अलग रात है
मैं इसका क्या करूँ
मैं इसका कुछ तो करूँ
क्या इसे तकिया बना कर सो जाऊँ</poem>
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