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नज़्म उलझी हुई है सीने में / गुलज़ार
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09:41, 11 अप्रैल 2008
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह <br>
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं <br>
कब से बैठा
हुआ
हूँ मैं जानम <br>
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा<br><br>
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है <br>
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी <br><br>
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