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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>
कौन कहता है
पेड़ के नहीं होते हाथ
बाहें हिलाता है पेड़
कदमताल करता हुआ
तालियाँ बचाता है
जब गौतम को होता है ज्ञान
आह भरता है
जब औष्ण को मारता है व्याध
हाथों से ही तो पकड़ रखे थे पेड़ ने
पाण्डवों के शस्त्रा अज्ञातवास में
हाथों से ही झगड़ता है पुष्प पत्रा
हाथों से ही पकड़ता है हवा
जिसे आदमी नहीं पकड़ पाता
करे लाख बन्द मुट्ठी।
पेड़ के हाथ दिखाई नहीं पड़ते
होते हैं
जैसे दिखाई नहीं पड़ते हैं हथेली के बाल हो
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>
कौन कहता है
पेड़ के नहीं होते हाथ
बाहें हिलाता है पेड़
कदमताल करता हुआ
तालियाँ बचाता है
जब गौतम को होता है ज्ञान
आह भरता है
जब औष्ण को मारता है व्याध
हाथों से ही तो पकड़ रखे थे पेड़ ने
पाण्डवों के शस्त्रा अज्ञातवास में
हाथों से ही झगड़ता है पुष्प पत्रा
हाथों से ही पकड़ता है हवा
जिसे आदमी नहीं पकड़ पाता
करे लाख बन्द मुट्ठी।
पेड़ के हाथ दिखाई नहीं पड़ते
होते हैं
जैसे दिखाई नहीं पड़ते हैं हथेली के बाल हो
</poem>