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21:00, 31 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>कैशियर है एक पेड़
फलों से लदा
दफ्तर के स्वर्ग में कल्पवृक्ष सा।
आस्था है सब की
दूध वाले से लेकर
अखबार वाले तक
घर परिवार का मोक्ष क्षेम है उसके हाथ
हर कर्मचारी को याद आता है कैशियर
आड़े वक्त में ईश्वर की तरह।
शापित भी है वह
हाथ लगाएगा जिस फल को
सोनेगा बनेगा
खा नहीं सकेगा वह खुद
केवल बाँट सकेगा
सोने के फल खाए भी नहीं जाते।
</poem>