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क्षणिकाएँ-1 / शमशाद इलाही अंसारी
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09:27, 1 सितम्बर 2009
'''1.
तुझे कभी चैन न आए इतना
बचैन
बेचैन
कर दूंगा
तेरे बदन में अपने जिस्म का रेज़ा रेज़ा भर दूंगा,
मेरी नींदों को हवाओं में घोलने वाले
अनिल जनविजय
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