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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
साथी सो न क्रर कुछ बातबात।
पूर्ण कर दे वह कहानी , जो शुरू की थी सुनानी,आदि जिसका हर निशा में,
अन्त चिर अज्ञात
साथी सो न कर कुछ बात। बातकरते सो गया तू,स्वप्न में फिर खो गया तू,रह गया मैं और आधी रात आधी बातसाथी सो न कर कुछ बात।
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