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{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
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महशर में कोई पूछनेवाला तो मिल गया।
रहमत बड़ी है मुझ को गुनहगार देखकर॥

उन दोस्तों में वो न हों या रब! जो वक़्ते-दीद।
बीमार हो गये रुख़े-बीमार देखकर॥

</poem>