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17:49, 9 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
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<poem>
सैंकड़ों नाले करूँ लेकिन नतीजा भी तो हो।
याद दिलवाऊँ किसे जब कोई भूला भी तो हो॥
उनपै दावा क़त्ल का महशर में आसाँ है मगर।
बावफ़ा का ख़ून है, ख़ंजर पै ज़ाहिर भी तो हो॥
</poem>