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{{KKRachna
|रचनाकार=साक़िब लखनवी
}}
<poem>
ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात।
जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥
कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म।
चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो गईं॥
</poem>
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|रचनाकार=साक़िब लखनवी
}}
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ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात।
जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥
कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म।
चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो गईं॥
</poem>