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लो वही हुआ / दिनेश सिंह

360 bytes added, 04:56, 11 सितम्बर 2009
गौरइया हाँफ रही ड़र कर
ना रही नदी, ना रही लहर।
 
हर ओर उमस के चर्चे हैं
बिजली पंखों के खर्चे हैं
बूढे महुए के हाथों से,
उड़ रहे हवा में पर्चे हैं
"चलना साथी लू से बचकर"
ना रही नदी, ना रही लहर।
 
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