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ऐसा कुछ भी नहीं / कैलाश वाजपेयी

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अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं कल्पना में कि भूखे रहकर फूलों पर सोया जाए |
सूरज कि सोनिल शहतीरों ने साथ दिया कब अन्धी आँखों का ,जब अंगुलियाँ ही बेदम हों तो दोष भला फिर क्या सूराखों का |अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन ! ऐसा कुछ भी नहीं कल्पना में कि भूखे रहकर फूलों पर सोया जाए | करें</poem></poem>
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