</poem>'''<poem>ऐसा कुछ भी नहीं जिंदगी में कि हर जानेवाली अर्थी पर रोया जाए | काँटों बिच उगी डाली पर कल
जागी थी जो कोमल चिंगारी ,
वो कब उगी खिली कब मुरझाई
याद न ये रख पायी फुलवारी |
ओ समाधि पर धूप-धुआँ सुलगाने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं रूपश्री में कि सारा युग खंडहरों में खोया जाए |....
चाहे मन में हो या राहों में
हर अँधियारा भाई-भाई है ,
मंडप-मरघट जहाँ कहीं छायें
सब किरणों में सम गोराई है |
पर चन्दा को मन के दाग दिखाने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं चाँदनी में कि जलता मस्तक शबनम से धोया जाये |
साँप नहीं मरता अपने विष से
फिर मन कि पीड़ाओं का डर क्या ,
जब धरती पर ही सोना है तो
गाँव-नगर-घर-भीतर- बाहर क्या |
प्यार बिना दुनिया को नर्क बताने वाले सुन !
ऐसा कुछ भी नहीं बंधनों में कि सारी उम्र किसी का भी होया जाए |
सूरज कि सोनिल शहतीरों ने
साथ दिया कब अन्धी आँखों का ,
जब अंगुलियाँ ही बेदम हों तो
दोष भला फिर क्या सूराखों का |
अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन ! ऐसा कुछ भी नहीं कल्पना में कि भूखे रहकर फूलों पर सोया जाए |'''</poem></poem>#REDIRECT [[#REDIRECT [[I]]#REDIRECT [[#REDIRECT [[Insert text]]== == ऐसा कुछ भी नहीं == =ऐसा कुछ भी नहीं जिंदगी में कि हर जानेवाली अर्थी पर रोया जाए |काँटों बिच उगी डाली पर कल जागी थी जो कोमल चिंगारी ,वो कब उगी खिली कब मुरझाई याद न ये रख पायी फुलवारी |ओ समाधि पर धूप-धुआँ सुलगाने वाले सुन ! ऐसा कुछ भी नहीं रूपश्री में कि सारा युग खंडहरों में खोया जाए |....चाहे मन में हो या राहों में हर अँधियारा भाई-भाई है ,मंडप-मरघट जहाँ कहीं छायें सब किरणों में सम गोराई है |पर चन्दा को मन के दाग दिखाने वाले सुन !ऐसा कुछ भी नहीं चाँदनी में कि जलता मस्तक शबनम से धोया जाये |साँप नहीं मरता अपने विष से फिर मन कि पीड़ाओं का डर क्या ,जब धरती पर ही सोना है तो गाँव-नगर-घर-भीतर- बाहर क्या |प्यार बिना दुनिया को नर्क बताने वाले सुन !ऐसा कुछ भी नहीं बंधनों में कि सारी उम्र किसी का भी होया जाए |सूरज कि सोनिल शहतीरों ने साथ दिया कब अन्धी आँखों का ,जब अंगुलियाँ ही बेदम हों तो दोष भला फिर क्या सूराखों का |अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन ! ऐसा कुछ भी नहीं कल्पना में कि भूखे रहकर फूलों पर सोया जाए | =]]]]