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नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥
बाएगुरबत बाएगु़रबत कि हुइ हुई जिसके लिए खाना-खराब।
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥
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