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ठंड का कारण / तरुण भटनागर

12 bytes added, 19:42, 31 मार्च 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=तरुण भटनागर
}}{{KKAnthologySardi}}
<poem>
अगर -
रक्त बफर बन जाता,
हृदय रूक जाता हाइपोथमिर्या हाइपोथर्मिया से,
गल जातीं उंगलियाँ,
अकड़कर, कड़कड़ा जाता पूरा शरीर,
क्या तब भी,
सूरज निदोर्ष निर्दोष बरी हो जाता?
अगर तेज़ ठण्ड,
दुबकाए रखती रजाई में,
तब -
पाप कितना यतीम होता।
शरीर की गर्मी को रोके हैं है -
चमड़े का जैकेट,
शरीर और जैकेट के बीच।
पर मेरे सामने वाली बस्ती के लोग,
ठिठुरकर कबके ठिठुर कर कब के मर गए,
मुझे यकीन है,
अगर ना पहनता जैकेट,
अगर माली न होता, तब भी,
वे बगीचे से नहीं भागते,
अंगद के पांव पाँव ...।
सुने हैं,
पृथ्वी का झुकाव, सूरज का सरकना...।
पर इस बार ठण्ड आई थी,
ढ़ेर ढेर-सी बातों और प्रश्नों,
पर से गुजरकर,
उन्हें वैसा ही छोड़ जाने,
वह न आती तो,
बदल जातीं -
ढ़ेर ढेर-सी बातें और प्रश्न।
</poem>