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सिन्धु के अश्रु!<br>
आज अनिश्चित पूरा होगा श्रमिक प्रवास,<br>
आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास।<br><br>
[[बादल राग / भाग ४ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"|अगला भाग >>]]