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{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>पुराने वक़्त के चेहरों को ध्यान में रख ले।
नज़र में फूल तो ख़ुश्बू जुबान में रख ले।

हथेलियों की लकीरों से दूर है दुनिया,
मेरी दुआओं का जादू कमान में रख ले।

सुनेगा कौन अदालत में साफ सच्चाई,
ज़रा सी झूठ की शोख़ी बयान में रख ले।

अभी तो दूर बहुत दूर है तेरी मंज़िल,
मुसाफिरों का मुकद्दर थकान में रख ले।

मेरे ख़्याल के खेतों को छोड़ दे लेकिन,
मेरे वजूद को गिरवी लगान में रख ले।

ज़मीं की कोख़ में सब कुछ नहीं समा सकता,
जिगर के दर्द को अब आसमान में रख ले।

न जाने कौन से पल अब चिराग़ बुझ जाए,
किसी के प्यार का जुगनू अब मकान में रख ले।
</poem>
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