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गहन है यह अंधकारा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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20:24, 9 मई 2007
गहन है यह अंधकारा;<br>
स्वार्थ के
अवगंठनों
अवगुंठनों
से<br>
हुआ है लुंठन हमारा।<br><br>
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Hemendrakumarrai