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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>नहीं नसीब में पानी तो हवा रख दे।
जिगर में धूप तो अहसास में घटा रख दे।
अगर ये जिस्म की दूरी मिटा नहीं सकता,
दिलों के बीच भी सदियों का फासला रख दे।
उजाला आप ही आएगा चूमने आखें,
सुबह की धूप में यादों का आईना रख दे।
कहीं ये शख़्स भी खो जाए न अँधेरों में,
मेरे लबों पे किसी और की दुआ रख दे।
यहाँ चिराग़ भी जलते हुए झिझकते हैं,
हमारे हाथ पर सूरज बुझा हुआ रख दे।
रुला रहा है बहुत पहली बार का सपना,
मेरी निगाह में अब ख़्वाब दूसरा रख दे।
सुना है वक़्त भी आता है दर्द को पढ़ने,
उसी क़िताब का फिर ख़ोलकर सफा रख दे।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>नहीं नसीब में पानी तो हवा रख दे।
जिगर में धूप तो अहसास में घटा रख दे।
अगर ये जिस्म की दूरी मिटा नहीं सकता,
दिलों के बीच भी सदियों का फासला रख दे।
उजाला आप ही आएगा चूमने आखें,
सुबह की धूप में यादों का आईना रख दे।
कहीं ये शख़्स भी खो जाए न अँधेरों में,
मेरे लबों पे किसी और की दुआ रख दे।
यहाँ चिराग़ भी जलते हुए झिझकते हैं,
हमारे हाथ पर सूरज बुझा हुआ रख दे।
रुला रहा है बहुत पहली बार का सपना,
मेरी निगाह में अब ख़्वाब दूसरा रख दे।
सुना है वक़्त भी आता है दर्द को पढ़ने,
उसी क़िताब का फिर ख़ोलकर सफा रख दे।
</poem>