भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नये लुभावने मंज़र / माधव कौशिक

1,421 bytes added, 04:57, 15 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक }} <...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=सूरज के उगने तक / माधव कौशिक
}}
<poem>नये लुभावने मंज़र मगर उदास नहीं।
बहुत सलीस हैं पत्थर मगर उदास नहीं।

न जाने कौन हमें लूटता है राहों में,
हमारे शहर का रहबर मगर उदास नहीं।

ज़ुबान काट कर रख आए अपने हाथों से,
अजीब बात है शायर मगर उदास नहीं।

किये हैं कत्ल कई फूल,पत्तियाँ कलियाँ.
तुम्हारे हाथ का खंजर मगर उदास नहीं।

ज़मीन आग में झुलसी हुई है सदियों से।
उदास चाँद है अम्बर मगर उदास नहीं।

फटी हो लाख भले हो गई बहुत मैली,
अभी तलक मेरी चादर मगर उदास नहीं।

हमारी आह को सुनते ही चीख़ उठता था,
वही है आज मेरा घर मगर उदास नहीं।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits