भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झूठा सच / रंजना भाटिया

1,322 bytes added, 18:22, 16 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>चाहता है .. कौन किसको कि...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>चाहता है ..
कौन किसको कितना ..
कौन ,दिन -रात
बेकरार रहता है
बसती हैं आंखों में
छवि किसकी ..
और किसकी ...
एक हाँ सुनने को
यह दिल ...
हर लम्हा तडपता है

मन ही तो है..
जो है बावरा..
पा लेना चाहता है
सब कुछ ...

जैसे ही बंद करता है
एक "हाँ "मुट्ठी में..
वह बात ...
पलक झपकते ही
बन के हवा..
कहीं उड़ जाती है....
और दिल के आईने में
बनी एक आकृति
एक साया सा
बन के रह जाती है

तब ....
दिल नही चाहता मेरा
कि .....
मेरे लिखे लफ्जों में
कोई तुम्हे तलाश करे
साकार करे ...
उस झूठे सपने को
और उस "हाँ "को
कोई मेरे अतिरिक्त पढे !!
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits