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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी }} <poem> उमीदे-मर्ग कब तक ज़िन...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
<poem>
उमीदे-मर्ग कब तक
ज़िन्दगी का दर्दे-सर कब तक
यॅ माना सब्र करते हैं महब्बत में
मगर कब तक
दयारे दोस्त हद होती है
यूँ भी दिल बहलने की
न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक
यॅ तदबीरें भी तक़दीरे-
महब्बबत बन नहीं सकतीं
किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक
इनायत<sup>1</sup> की करम की लुत्फ़ की
आख़िर कोई हद है
कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर<sup>2</sup> कब तक
किसी का हुस्नर रूसवा
हो गया पर्दे ही पर्दे में
न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-
नज़र कब तक
1- कृपा, 2- जिगर के घाव का उपचार
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
<poem>
उमीदे-मर्ग कब तक
ज़िन्दगी का दर्दे-सर कब तक
यॅ माना सब्र करते हैं महब्बत में
मगर कब तक
दयारे दोस्त हद होती है
यूँ भी दिल बहलने की
न याद आयें ग़रीबों को तेरे दीवारो-दर कब तक
यॅ तदबीरें भी तक़दीरे-
महब्बबत बन नहीं सकतीं
किसी को हिज्र में भूलें रहेंगे हम मगर कब तक
इनायत<sup>1</sup> की करम की लुत्फ़ की
आख़िर कोई हद है
कोई करता रहेगा चारा-ए-जख़्मे ज़िगर<sup>2</sup> कब तक
किसी का हुस्नर रूसवा
हो गया पर्दे ही पर्दे में
न लाये रंग आख़िरकार तासीरे-
नज़र कब तक
1- कृपा, 2- जिगर के घाव का उपचार
</poem>