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20:53, 18 सितम्बर 2009
<poe{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}m>मेरे दिल की ज़मीन को सपनो का आकाश चाहिए,
उड़ सकूँ या नही ,किंतु पँखो के होने का अहसास चाहिए......
मौसम दर मौसम बीत रही है यह जिंदगानी ,
मेरी अनबुझी प्यास को बस एक "मधुमास" चाहिए.
लेकर तेरा हाथ, हाथो में काट सके बाक़ी ज़िंदगी का सफ़र.
मेरे डग-मग करते क़दमो को बस तेरा विश्वास चाहिए.
साँझ होते ही तन्हा उदास हो जाती है मेरी ज़िंदगी,
अब उन्ही तन्हा रातो को तेरे प्यार की बरसात चाहिए.
कट चुका है अब तो मेरा" बनवास" बहुत
मेरे बनवास को अब "अयोध्या का वास" चाहिए. !!</poem>