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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>तुम याद आए आज फिर_ सुबह ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>तुम याद आए आज फिर_
सुबह उठते ही गरम चIय के साथ,
जब जीभ जल गयी थी,
पेपरवाले ने ज़ोर से फेंका अख़बार जब,
मुह्न पर आकर लगा था ज़ोर से,
बाथरूम मैं जाते वक़्त,
जब मेरा पैर भी दरवाज़े से उलझ गया था,
फिर सब्ज़ी काटते वक़्त जब उंगली काट बेठbethi थी,
नहाते वक़्त उसी कट kati अंगुली में जब साबुन लगा था,
हाँ याद आए तुम तभी, प्रेस ने भी हाथ जला दिया था.
और बरसात से अकड़ा दरवाज़ा भी बंद नही होता था,
स्कूटी की किक्क भी मार गयी थी झटका,
तुम याद आए______________
हर चुभन के साथ.....
हर टूटन के साथ...........
हर चोट के साथ...........
दे गये ना जाने कितने और ज़ख़्म
याद दिलाने को अपनी
हर ज़ख़्म में उठती टीस के साथ.,...
ना नही--.
मेरी टीस से डरना मत
मेरी चुभन को सहलाना मत.
मेरे ज़ख़्मो को छूना मत
फिर तुम याद कैसे आओगे?
यूँ ही आते रहो मेरे ख़्यालो मैं
देते रहो नये ज़ख़्म,
पुराने को करो हरा,
बनेने दो इन्हे नासूर,
इनसे उठता दर्द, दिलाते रहे याद
तुम्हारी, यूँ ही हर सुबह..................
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>तुम याद आए आज फिर_
सुबह उठते ही गरम चIय के साथ,
जब जीभ जल गयी थी,
पेपरवाले ने ज़ोर से फेंका अख़बार जब,
मुह्न पर आकर लगा था ज़ोर से,
बाथरूम मैं जाते वक़्त,
जब मेरा पैर भी दरवाज़े से उलझ गया था,
फिर सब्ज़ी काटते वक़्त जब उंगली काट बेठbethi थी,
नहाते वक़्त उसी कट kati अंगुली में जब साबुन लगा था,
हाँ याद आए तुम तभी, प्रेस ने भी हाथ जला दिया था.
और बरसात से अकड़ा दरवाज़ा भी बंद नही होता था,
स्कूटी की किक्क भी मार गयी थी झटका,
तुम याद आए______________
हर चुभन के साथ.....
हर टूटन के साथ...........
हर चोट के साथ...........
दे गये ना जाने कितने और ज़ख़्म
याद दिलाने को अपनी
हर ज़ख़्म में उठती टीस के साथ.,...
ना नही--.
मेरी टीस से डरना मत
मेरी चुभन को सहलाना मत.
मेरे ज़ख़्मो को छूना मत
फिर तुम याद कैसे आओगे?
यूँ ही आते रहो मेरे ख़्यालो मैं
देते रहो नये ज़ख़्म,
पुराने को करो हरा,
बनेने दो इन्हे नासूर,
इनसे उठता दर्द, दिलाते रहे याद
तुम्हारी, यूँ ही हर सुबह..................
</poem>