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प्यार के रंग / रंजना भाटिया

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|रचनाकार=रंजना भाटिया
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}}
<poem>होली का रंग बिखरा है चारो ओर
आज कुछ ऐसी बात करो
रंग दो अपने प्यार के रंगो से
उन्ही रंगो से मेरा सिंगार करो........

होली का रंग बिखरा है चारो ओर

रहो मेरे दिल के पिंजरे में,
और नज़रो से मुझको प्यार करो.
दो मेरी सांसो को अपनी धड़कनो कि लए
आज फिर कुछ ऐसी कोई बात करो..........



होली का रंग बिखरा है चारो ओर

रहो मेरी बाहों कि परिधि में.
और टूट कर मुझको प्यार करो.
आज मैं --मैं "ना रहूं ,आज मैं "तुम" हो जाउँ
अपने प्यार से ऐसा मेरा सिंगार करो.........

होली का रंग बिखरा है चारो ओर

लिख दो मेरे कोमल बदन पर
अपने अधरो से एक कविता.
जिसके" शब्द' भी तुम हो, और 'अर्थ" भी तुम हो,
बस ऐसा मुझ पर उपकार करो......



होली का रंग बिखरा है चारो ओर

तेरी 'मुरली कि धुन सुन कर..........
मन आज कुछ ऐसा भरमाये......
हिरदये की पीरा, देह कि अग्नि.
रंगो में घुल जाए..
होली का रंग-रास आज फिर से "महारास हो जाए,
रंग दो आज मुझको अपने प्यार के रंग में..
प्रियतम ऐसी रंगो कि बरसात करो..........



होली का रंग बिखरा है चारो ओर

होली का रंग बिखरा है चारो ओर
आज कुछ ऐसी बात करो......
रंग दो अपने प्यार के रंगो से......
उन्ही प्यार के रंगो से आज फिर तुम मेरा सिंगार करो........

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