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ओ सावन के बादल / पंकज सुबीर

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<poem>ओ सावन के बादल जाकर देना इतनी सिर्फ निशानी ।
भय्या के हाथों को छूकर देना इन आंखों का पानी ॥

बाबूजी से पीर मेरी कोई भी मत कह देना सुन ले ।
कहना गुड्डी बिटिया तो हो गई है अब ससुराल की रानी ॥

मेरा नाम सुनेंगीं जब तो हुलस हुलस कर वो रोऐंगीं ।
अम्मा की आंखों से ममता बह निकलेगी बनकर पानी॥

पिंजरे का हीरामन अब भी गुड्डी-गुड्डी रटता होगा ।
कह देना तेरी वो गुड्डी हो गई है अब बहू सयानी॥

घर के इक कोने में मेरी गुड़िया भी रक्खी हो शायद।
कहना याद बहुत आती है तेरी लाडो बिटिया रानी ॥

अमरूदों के बाग में जाकर माली काका से कहना ये।
चोरी के अमरूदों की यादें हैं अब तो सिर्फ कहानी ॥

पिछवाड़े के नीम पे झूला डाला होगा काकाजी ने ।
उस झूले पर बैठ हुमकना पुरवय्या होगी मस्तानी ॥
नदिया के कानों में थोड़ा शरमा कर ये बतला देना।
आते माघ पूस तक बन जाएगी तू अम्‍मा से नानी ॥

आंगन के तुलसी चौरे पर कर आना तू संजा बाती ।
और कहना आशीष बनाए रखना तुलसी माता रानी।।</poem>
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