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माँ / प्राण शर्मा

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|रचनाकार=प्राण शर्मा
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<poem>माँ की निर्मल काया
उससे लिपटी है
सुन्दरता की छाया

युग--युग की क्षमता है
पूजा की जैसी
हर माँ की ममता है

धन धान्य बरसता है
माँ के हंसने से
सारा घर हंसता है

मदमस्ती हरसू है
माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है

दुनिया में न्यारी माँ
हंसती- हंसाती है
बच्चों की प्यारी माँ

हर बच्चा पलता है
सच है मेरे यारो
घर माँ से चलता है

मन ही मन रोती हैं
बच्चों के दुःख में
माएं कब सोती हैं

हर बात में कच्चा है
माँ के आगे तो
बूढा भी बच्चा है

माँ कैसी होती है
पारस सा मन है
माँ ऐसी होती है

कुछ कद्र करो भाई
बेटे हो फिर भी
क्यों पीड़ित है माई</poem>
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