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{{KKRachna
|रचनाकार=प्राण शर्मा
}}
<poem>मेरा मकान हो या तुम्हारा मकान हो
ऐसा लगे कि जैसे महल आलिशान हो

यूँ तो मिठाइयों की दुकाने हैं हर जगह
मिलता हो जिसमें प्यार भी ऐसी दुकान हो

क्यों आदमी को रोज़ फिसलने का डर रहे
क्यों जिंदगी में ऐसी भी कोई ढलान हो

खुशहाली मेहरबान हो दुनिया में इस कदर
हीरों की खान हो कहीं सोने की खान हो

छोटी सी उसकी भूल डुबो देती है उसे
कोई भले ही दोस्तो कितना महान हो

सब नफरतें, उलाहने दुनिया में दफ़्न हों
हर कोई "प्राण" हर किसी का चाहवान हो </poem>
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